बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचनासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर
6. नेता या नायक
प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
नायक शब्द 'नी' धातु से 'ण्वुल्' प्रत्यय के योग से निष्पन्न होता है जिसका अर्थ है— नेता, प्रधान आदि। 'नयति प्रापयतीति नायक' इस व्युत्पत्तिगत अर्थ के आधार पर 'नी' धातुका अर्थ होता है— ले जाना, ले चलना, पहुँचाना इत्यादि। इस प्रकार 'नायक' शब्द का अर्थ हुआ— जो कथावस्तु को फलप्राप्ति की ओर ले जाता है।
विभावादि द्वारा सहृदय के हृदय में अभिव्यक्त रत्यादि स्थायी भाव ही रस है। विभाव दो प्रकार के होते हैं- आलम्बन एवं उद्दीपन। आलम्बन विभाव के द्वारा ही रस का संचार होता है, जो नाटक में नायक, नायकादि के माध्यम से होता है।
कथावस्तु के बाद रूपक का दूसरा महत्त्वपूर्ण तत्त्व है. 'नेता'। नेता का अर्थ यद्यपि नायक से लिया जाता है तथापि नाट्यशास्त्र में 'नेता' तत्त्व के अन्तर्गत सभी प्रकार के नाटकीय पात्र आ जाते हैं। जिसमें नायक पीठमर्द नायक के अर्थ सहायक, दण्ड सहायक, धर्म सहायक विदूषक आदि सभी ग्रही हैं। किन्तु हमें नायक के विषय में ही बताना अभीष्ट है। अतः सर्वप्रथम नायक के सामान्य गुणों के विषय में जानना आवश्यक है। साहित्य दर्पण के अनुसार नायक के सामान्य गुण इस प्रकार है-
"त्यांगी कृती कुलीनः सुश्रीको रूपयौवनोत्साही।
दक्षोऽनुरक्तलोकस्तेजो वैदग्ध्यशीलवान्नेता " ॥
अर्थात् नेता या नायकं त्यागी, कृती (करणीय कर्म को करने वाला) कुलीन, सम्पत्ति तथा शोभा से सम्पन्न, रूप, यौवन और उत्साह से सम्पन्न, दक्ष ( कर्म निपुण), लोकप्रिय तेजस्वी, चतुर तथा शीलवान होना चाहिए। दशरूपककार धनंजय ने विस्तारपूर्वक नायक के सामान्य गुणों का उल्लेख किया है-
"नेताविनीतो मधुरस्त्यागी दक्षः प्रियंवदः
रक्तलोकः शुचिर्वाग्मी रूढवंशः स्थिरो युवा।
बुद्ध्युत्साहस्मृतिप्रज्ञाकलामानसमन्वितः
शूरो दृढ़स्य तेजस्वी शास्त्रचक्षुश्च धार्मिकः ॥"
रूपक का नायक विनम्र, मधुर, (सुन्दर ), त्यागी, दक्ष (शीघ्रता) से कार्य करने वाला, प्रिय वचन बोलने वाला, लोकप्रिय, शुद्धमन वाला, वाक्पटु, प्रसिद्ध वंश में उत्पन्न, स्थिर चित्त, युवा, बुद्धिमान, उत्साही, स्मृति, प्रज्ञा, कला एवं मान से युक्त, शूरवीर, तेजस्वी, शास्त्रों का ज्ञाता और धार्मिक होना चाहिए। उपर्युक्त गुण नायक के सामान्य गुण कहे गये हैं। ये गुण यथासंभव सभी प्रकार के नायकों में होने चाहिए।
नायक के भेद - "भेदैश्चतुर्धा ललितशान्तोदात्तेद्धतैरयम्।” नायक की प्रकृति विशेष के आधार पर उसके चार भेद किये गये हैं- ललित, शान्त, उदात्त एवं ऊद्धत। नाट्यशास्त्र, साहित्य दर्पण आदि नाट्य सम्बन्धी लक्षण ग्रन्थों में उक्त नायक भेदों के पूर्व धीर शब्द जोड़ा गया है। धीर शब्द से तात्पर्य है धैर्य अर्थात् धैर्ययुक्त, जो संकट की स्थिति में भी विचलित न हो। धैर्य गुण ऊपर कहे गये चारों प्रकार के नायकों के लिए अनिवार्य है। अतः नायक के चार भेद हुए -
1. धीरललित
2. धीरशान्त
3. धीरोदात्त
4. धीरोद्धत।
इनके लक्षण इस प्रकार हैं-
1. धीरललित नायक -"निश्चिन्तों धीरललितः कलासक्तः सुखी मुदुः " चिन्ता से मुक्त, नृत्यगीत आदि कलाओं में आसक्त, सुखी एवं सुकोमल प्रकृति का नायक धीर ललित होता है। धीरललित नायक चिन्ता से मुक्त रहता है क्योंकि उसके राज्यादि की चिन्ता उसके मन्त्री द्वारा की जाती है। चिन्ता से रहित होने के कारण वह संगीतादि कलाओं में आसक्त तथा भोग विलास में लीन रहता है। उसमें शृंगार रस की प्रधानता होती है। इसीलिए वह सुकोमल आचरण एवं स्वभाव वाला होता है। जैसे रत्नावली नाटिका का नायक उदयन, राज्य प्रजा आदि की ओर से सर्वथा निश्चित है। अपनी प्रिया वासवदत्ता का समागम उसे प्राप्त है और वह रागरंग में लीन है। अतः उदयन धीरललित कोटि का नायक है।
2. धीरशान्त नायक - " सामान्य गुणयुक्तस्तु धीरशान्तो द्विजादिकः " नायक के विनम्रता, त्याग, माधुर्य, दक्षता आदि गुणों से युक्त ब्राह्मण आदि धीरशान्त नायक कहा जाता है। अर्थात् यह नायक शान्त प्रकृति का होता है। धीरशान्त कोटि का नायक ब्राह्मण, मन्त्री या कोई वणिक् होता है। इसमें विनम्रता आदि सामान्य, गुण अन्य नायकों की तरह होते हैं। रूपक के एक भेद प्रकरण का नायक धीरशान्त कोटि का ही होता है। यद्यपि ब्राह्मण, वणिक् और मन्त्री में किंचित निश्चितन्ता को शान्त कोटि का ही माना जाना चाहिए क्योंकि वे प्रकृति से ही शान्त होते हैं। जैसे- "मृच्छकटिकम्' का नायक जन्मना ब्राह्मण और कर्मणा वणिक् होने के कारण प्रकृति से ही शान्त है। इसी प्रकार मालतीमाधवम् का नायक माधव जन्म से ब्राह्मण होने के कारण धीरशान्त कोटि का है।
3. धीरोदात्त नायक-
"महासत्वोऽतिगम्भीरः क्षमावानविकत्थनः।
स्थिरो निगूढाहकारों धीरोदात्तो दृढव्रतः ॥"
धीरोदात्त नायक महापराक्रमी, अतिगम्भीर प्रकृति का, क्षमाशील, आत्मप्रशंसा न करने वाला, स्थिर स्वभाव का, विनम्रता आदि ( श्लाध्य) गुणों से युक्त अहंकार आदि दुर्गुणों को छिपाने वाला तथा अंगीकृत किये हुए कार्य को पूर्ण करने वाला होता है। जैसे-हर्षकृत नागानन्द नाटक का नायक जीमूतवाहन धीरोदत्त कोटि का नायक है। उसी प्रकार राम भी धीरोदात्त कोटि के नायक कहे गये हैं। रूपक के नाटक नामक प्रमुख भेद का नायक सदैव धीरोदात्त कोटि का ही होता है। नायक की धीरोदात्ता को बनाये रखने के लिए प्रसिद्ध ऐतिहासिक कथानक में कुछ परिवर्तन भी करने पड़ते हैं जैसे कि अभिज्ञानशाकुन्तलम् में दुष्यन्त को धीरोदात्त बनाये रखने के लिये कालिदास ने दुर्वासा के श्राप की कल्पना की है जो कि मूल कथा में नहीं है।
4. धीरोद्धत नायक-
"दर्पमात्सर्यभूयिष्ठो मायाछद्मपरायणः।
धीरोद्धतस्त्वहंकारी चलश्चण्डो विकत्थनः ॥"
अत्यधिक घमण्डी, ईर्ष्याभाव की अधिकता वाला, माया और कपट से युक्त, अहंकारी, चंचल चित्त वाला, क्रोधी तथा स्वयं ही अपनी प्रशंसा करने वाला धीरोद्धत नायक कहलाता है। धीरोद्धत नायक में घमण्ड तथा ईर्ष्या का आधिक्य होता है। वह अपनी तन्त्र शक्ति के द्वारा अविद्यमान (अप्रकटित) वस्तु को भी प्रकाशित कर देता है। वह छल-कपट से युक्त होता है। ऐसा नायक आत्मप्रशंसा करने वाला होता है अर्थात् अपने शक्ति पराक्रम आदि का खुद ही बखान करता है। जैसे परशुराम और रावण धीरोद्धत कोटि के अन्तर्गत आते हैं।
5. शृंगारिक आधार पर नायक की अवस्थाएँ - उपर्युक्त चार भेदों - धीरललित, धीरशान्त, धीरोदात्त और धीरोद्धत के अलावा नायक की श्रृंगारिकता के आधार पर उसकी चार अवस्थाएँ कही गई-
1. दक्षिण,
2. शठ,
3. धृष्ट,
4. अनुकूल
कहने का तात्पर्य यह है कि किसी नवीन नायिका के प्रति आसक्त चित्त वाला होने पर नायक अपनी ज्येष्ठा नायिका (पत्नी) के प्रति दक्षिण, शठ या धृष्ट अवस्था वाला होता है। एक ही नायिका के प्रति आसक्ति रखने वाला जो नायक है वह अनुकूल कहलाता है। नायक ही इन अवस्थाओं की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
6. दक्षिण: "दक्षिणोऽस्यां सहृदयः " - जो नायक नवीन नायिका के प्रति आसक्त होते हुए ज्येष्ठा (अपनी पत्नी) नायिका के प्रति सहृदयता का व्यवहार करता है वह दक्षिण नायक होता है। अर्थात् कनिष्ठा नायिका के प्रति आसक्त होते हुए भी अपनी पत्नी के प्रति आदर युक्त रहना ही नायक की दक्षिणता है। जैसे- रत्नावली नाटिका का नायक उदयन नवीन नायिका रत्नावली के प्रति आसक्त होते हुए भी अपनी पत्नी वासवदत्ता के प्रति आदर युक्त है। अतः वह दक्षिण अवस्था वाला है।
7. शठ - " गूढविप्रियकृच्छठः " अपनी पूर्वा नायिका का छिपकर अप्रिय करने वाला नायक शठ है। यद्यपि शठ और दक्षिण दोनों ही तरह के नायक नवीन नायिका के प्रति आसक्त होकर ज्येष्ठा नायिका का समान रूप से अप्रिय करते हैं फिर भी दक्षिण नायक ज्येष्ठा के प्रति सहृदय रहता है। वह ज्येष्ठा नायिका का मन दुखाना नहीं चाहता किन्तु शठ नायक हृदय से शुद्ध न होने के कारण इसकी चिन्ता नहीं करता। यही दोनों नायकों में विशेष अन्तर है।
8. धृष्ट - " व्यक्ताङ् गवैकृतौधृष्टो" जिस नायक के अंगों पर नवीन नायिका के साथ किये गये रति क्रीड़ा के चिह्न स्पष्ट रूप से देखे जाते हैं वह धृष्ट नायक है। अर्थात् जो नायक रात किसी अन्य नायिका के साथ व्यतीत करके शरीर पर लगे हुए रमण चिह्न के साथ ही अपनी ज्येष्ठा नायिका के पास चला जाता है वह धृष्ट नायक है। धृष्ट शब्द का सरल अर्थ है ढीठ। जो नायक स्पष्ट रूप से जानबूझकर ज्येष्ठा नायिका का दिल दुखाने की ढीठता (धृष्टता) करता है वही धृष्ट है।
6. अनुकूल - " अनुकूलस्त्वेकनायिकः " जिसकी एक ही नायिका होती है वह अनुकूल नायक कहलाता है अर्थात् एक ही नायिका में आसक्ति रखने वाला नायक अनुकूल है। जैसे राम आजीवन केवल सीता के प्रति ही एकनिष्ठ रहे हैं अतः वह अनुकूल अवस्था वाले नायक हैं।
दक्षिण शठ, धृष्ट और अनुकूल ये नायक के भेद न होकर नायक की श्रृंगारिक अवस्थाएँ हैं। अतः पहले बताए गये - धीरललित, धीरशान्त, धीरोदात्त और धीरोद्धत इन चारों नायक भेदों में से प्रत्येक की चार - चार अवस्थाएँ होती हैं। अतः नायक सोलह प्रकार का होता है।
जो सोलह प्रकार के नायक ऊपर कहे गये हैं उनमें से प्रत्येक उत्तम, मध्यम और अधम के भेद से तीन प्रकार का होता है। इस प्रकार धीरललित, धीरप्रशान्त, धीरोदात्त, धीरोद्धत (4) दक्षिण, शिठ, धृष्ट, अनुकूल (4) उत्तम, मध्यम, अधम (3) 48 इस प्रकार नायक के भेद प्रभेद माने गये हैं।
इन सभी प्रकार के नायकों के पुरुषोचित सात्विक गुण आठ माने गए हैं -
1. शोभा
2. विलास
3. माधुर्य
4. गम्भीरता
5. स्थिरता
6. तेजस्
7. ललित
8. औदार्य।
7. नायिका
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- प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
- प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
- प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
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- प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
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- प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
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- प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
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- प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
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- प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
- प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
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- प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
- प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
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